नई शिक्षा नीति में हिंदी मातृभाषा की पढ़ाई पर निबंध, सीबीएसई बोर्ड हिंदी पढ़ने का नया तरीका

नई शिक्षा नीति में हिंदी मातृभाषा की पढ़ाई पर निबंध, सीबीएसई बोर्ड हिंदी पढ़ने का नया तरीका

Last Updated on January 28, 2024 by Abhishek pandey

नई शिक्षा नीति में हिंदी मातृभाषा की पढ़ाई पर निबंध, सीबीएसई बोर्ड हिंदी पढ़ने का नया तरीका

दोस्तों जैसा मालूम है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 मे मातृभाषा हिंदी पढ़ाने के तरीके में काफी बदलाव आया है। सीबीएसई बोर्ड समय-समय पर स्किल्ड बेस्ट एजुकेशन और आर्ट इंटीग्रेशन एजुकेशन पर बल दिया है।
लेकिन न्यू एजुकेशन पॉलिसी (New education policy) में किसी लैंग्वेज को पढ़ाने के लिए किस तरह का तरीका अपनाया जाता है जिसे हम टीचिंग मेथड कहते हैं।


हालांकि पढ़ाने के तरीके में बदलाव नई शिक्षा नीति के अंतर्गत आया है। यदि आप किसी दूसरे देश में रहते हैं और वहां हिंदी पढ़ते हैं तो हिंदी पढ़ने और पढ़ाने के तरीके में अंतर हो सकता है लेकिन सीखने का उद्देश्य भाषा का यह है कि आपकी कुशलता लिखने, बोलने और पढ़ने के साथ विकसित हो इसके साथ आप में एनालिसिस (analysis skill) करने की क्षमता का भी विकास होना चाहिए।

मातृभाषा हिंदी, राष्ट्रभाषा हिंदी, राजभाषा हिंदी में पढ़ाई क्यों जरूरी

दोस्तों बहुत लोग सोचते होंगे कि अंतरराष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी के जरिए ही हम अपने जीवन में प्रोफेशनल लाइफ को मजबूती से जी सकते हैं लेकिन दोस्तों यदि आप भारत से हैं और भारत की मातृभाषा हिंदी या गुजराती, मराठी, बांग्ला इत्यादि भाषा नहीं सीखते हैं तो निश्चित ही भारतीय संस्कृति को पहचान ही नहीं सकते हैं।

mother language education: जैसा की मातृभाषा हिंदी, राष्ट्रभाषा हिंदी, राजभाषा हिंदी के रूप में हिंदी की पहचान है, अब तो यह अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में भी अपनी एक अलग पहचान विश्व समुदाय के लोगों में बना चुकी है। इसलिए जब आप एक दक्षिण एशिया या भारत जैसे देश में रहते हैं तो हिंदी को आप नजरअंदाज बिल्कुल नहीं कर सकते हैं। ‌

संवेगात्मक बुद्धि और सामाजिक बुद्धि

अपनी भाषा में सीखने से संवेगात्मक बुद्धि और समाजिक बुद्धि का बहुत अधिक विकास होता है। संवेगात्मक बुद्धि से संवेदना जागृत होती है।

नई शिक्षा नीति के अंतर्गत हुए बदलाव के बारे में आपके पास जानकारी है लेकिन अब हम आपको टीचिंग मेथड और हिंदी में पढ़ाई कैसे करें? इसके बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं। कौन सा स्किल (दक्षता) में विकास हो यहां पर एक रिसर्च आर्टिकल प्रस्तुत किया जा रहा है।‌

आशा है कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत भारत की हिंदी भाषा जो एक प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनने की ओर बढ़ रही है, इसमें पढ़ने-पढ़ाने के तरीके के बदलाव पर यह लेख छोटे-छोटे सब हेडिंग में लिखा गया है। आप इससे लाभ उठाकर अपने स्कूल, संस्थान, विश्वविद्यालय में इस आधार पर अपनी बात निबंध, भाषण, लेख आदि में रखकर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

हिंदी मातृभाषा, हिंदी भाषा पढ़ने पढ़ाने के लिए इस लेख को क्यों पढ़ें?


विषम परिस्थितियों में भी निर्णय लेने की क्षमता संवेगात्मक बुद्धि वालों में बहुत तीव्र होती है और यह मातृभाषा या अपनी भाषा में बचपन से बहुत तेजी से विकसित होता है।
अब आपको बता दें कि सामाजिक बुद्धि भी अपनी संस्कृति और समाज के प्रति अच्छे व्यवहार का प्रतीक होता है।‌

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भाषा, संस्कृति और इतिहास से जुड़ाव नहीं है तो निश्चित ही सामाजिक बुद्धि भी उस बालक में उतनी विकसित नहीं हो पाएगी, इस कारण से वह समाज में पिछड़ता चला जाएगा, बशर्ते उसमें कितनी भी बुद्धिमता हो। इसलिए आपने देखा होगा कि मेधावी बच्चे भी सामाजिक ताने-बाने को समझ नहीं पाते हैं और समाज में पिछड़ जाते हैं। इसका कारण ही यही है कि उनमें समाजिक बुद्धि और योग्यता स्किल का अभाव होता है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भाषा शिक्षण का स्वरूप

भाषा सीखना अब मजेदार बात है क्योंकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में खेल-खेल में सीखने पर बल दिया जा रहा है।

सीखने के तरीके में आनंद पूर्वक ज्ञान अर्जन विद्या अर्जन के तरीके इस्तेमाल किए जा रहे हैं विद्यार्थी के अनुभव के बल पर सीखने की प्रेरणा ओरी में की जा रही है ताकि कक्षा में बच्चों की रुचि और सीखने की प्रक्रिया प्रबल हो सके।

दक्षता आधारित हिंदी भाषा शिक्षा

स्किल्ड बेस्ट हिंदी एजुकेशन पर बल दिया जा रहा जिसे दक्षता आधारित हिंदी भाषा शिक्षा कहा जाता है। सीखने और मूल्यांकन करने का नजरिया विकसित किया जाता है, जिसमें सीखने वाले बच्चों की दक्षता का पता चले और उन्हें हिंदी के व्यावहारिक ज्ञान को अनुभव से जोड़कर उन्हें योग्य बनाया जा सके, जो उन्हें जीवन के वास्तविक घटनाओं से जोड़ता है। इसलिए अब सीखने की प्रक्रिया केवल ज्ञानार्जन नहीं करना बल्कि जीवन में इस सीख को उपयोगी बनाना है। इस बात को मैं प्रस्तुत करने के लिए कुछ बिंदु प्रस्तुत कर रहा हूं जिससे कि आप समझ सकते हैं-

दक्षता आधारित शिक्षा हिंदी में किसी भी बच्चे में पत्र लेखन के साथ विज्ञापन लेखन योग्यता विकसित करना है।

अपने पढ़ाई के 10 साल में यदि वह सही तरीके से विज्ञापन या पत्र नहीं लिख पाएगा तो उसकी व्यवहारिक योग्यता जीरो मानी जाएगी भले ही उसके अंकपत्र में अच्छे नंबर हो।
इसलिए योग्यता आधारित स्किल पैदा करने के लिए पत्र लेखन विज्ञापन लेखन, रिपोर्ट लेखन बोलने की शैली विश्लेषण करने की क्षमता विभिन्न तरह के हिंदी साहित्य को पढ़कर चरित्र निर्माण और कहानी लेखन, कविता लेखन आदि का विकास करना ताकि आने वाले समय में वह योग्यताओं को लेकर अपने करियर की शुरुआत कर सकें।

इसे ही योग्यता पर दक्षता आधारित शिक्षा (Skilled based education) कहा जाता है इसके लिए डिजाइन किए गए पाठ्यक्रम को और पाठ्यक्रम को पढ़ाने के तरीके में बदलाव किया गया है जो आपको नई शिक्षा नीति में देखने को अवश्य मिलेगा।

कला के माध्यम से हिंदी शिक्षण

भाषा सीखने के लिए हमें कई माध्यमों की जरूरत होती जिसमें कला के माध्यम से भी हम अपनी कल्पना की उड़ान और साहित्य के धरातल पर किसी भाषा को बेहतरीन तरीके से सीख सकते हैं। इसलिए आर्ट एजुकेशन लैंग्वेज से पर बल दिया जाता है। जैसा कि आपको मालूम है किसी भी व्यक्ति की रचनात्मक अभिव्यक्ति कला से ही समझ में आती है, पूरी स्टेप सीखने में कला के कई रूपों को हम अपना का हिंदी भाषा या कोई भाषा सीख सकते हैं।

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जैसे संगीत, नृत्य, नाटक, कविता, रंगशाला, यात्रा, मूर्तिकला, आभूषण बनाना, गीत लिखना, नुक्कड़ नाटक, कोलाज पोस्टर, कला प्रदर्शनी के माध्यम से सीखने की प्रक्रिया बहुत तीव्र हो जाती है, यह तरीका सीखने के लिए सबसे उत्तम माना गया है क्योंकि इसमें होने वाली गतिविधियों में बच्चा अपनी समझ पैदा करता है और इसमें अनेक विषयों और अंतर विषयों में परियोजना यानी प्रोजेक्ट बनाकर अपने सीखे हुए बातों को प्रस्तुत करता है; दूसरी बात इस तरीके की शिक्षा में बच्चा बोर नहीं होता है वह इंटरेस्ट तरीके से बातों को ग्रहण कर लेता है।

दक्षता आधारित शिक्षण से आप क्या समझते हैं?

दक्षता आधारित शिक्षा वह शिक्षा है जिसके सहारे हम बालक में कुशलता स्थापित करते हैं। जब हम ऐसी शिक्षा देते हैं कि बालक किसी कार्य में कुशल हो जाता है तो उसे दक्षता आधारित शिक्षण कहते हैं‌‌। जैसे बालक को किसी भाषा को सिखाने के लिए उसमें कई दक्षता का विकास किया जा सकता है।

ऐसी शिक्षण व्यवस्था को उत्पन्न करना होगा जिससे की भाषा में कुशलता उस बालक को प्राप्त हो सके। जैसे बोलने की कला यानी कुशलता जिसे हम दक्षता कह सकते हैं वह बालक के अंदर विकसित करने के लिए हमें अपने शिक्षण में बोलने की कला और उसके व्यवहारिक पक्ष को प्रस्तुत करना होगा। बालक के अनुभव के आधार पर उसके बोलने की कला का विकास करना शिक्षण में दक्षता शिक्षण कहलाएगा।

उदाहरण से समझें

यदि गणित विषय को समझने के साथ व्यवहारिक रूप से गणित का प्रयोग बालक कर सकता है तो कहेंगे कि उसमें दक्षता यानी स्किल्ड का विकास हुआ है। यदि कोई दुकानदार अपने वस्तुओं के मूल्य और उनकी खरीदारी आदि का स्टॉक रखने में सक्षम है तो इसी शिक्षा को व्यवहारिक रूप से जब बालक को गणित की कक्षा में दी जाती है तो यह भी एक तरह से दक्षता आधारित शिक्षा हुई।

दक्षता आधारित शिक्षा का फायदा यह होता है कि बालक तीव्र गति से जो भी सीखता है उसका उपयोग व व्यवहारिक तौर पर समाज में कर सकने लायक होता है। क्योंकि केवल ज्ञान के लिए शिक्षा उचित तो है लेकिन जब तक उसमें दक्षता का विकास न किया जाए तो वह बालक शिक्षित होते हुए भी बेरोजगार रह जाएगा।

अनुभव के आधार पर हिंदी भाषा सीखने का तरीका

जब कोई बच्चा सीखने के लिए शैक्षिक वातावरण (educational environment) में आता है तो उसको हम उसके पूर्व अनुभव के जरिए सिखा सकते हैं। हर बच्चे में स्वा मूल्यांकन आलोचनात्मक रूप से सोचने निर्णय लेने तथा ज्ञान निर्माण करने के लिए उसके अनुभव का प्रयोग किया जा सकता है इस विधि को प्रेक्षण विधि भी कहते हैं।

  • स्वयं के अनुभव से सीखने से उनमें ज्ञानार्जन अनुभव सहयोगात्मक तथा स्वतंत्र रूप से सीखने की प्रक्रिया बढ़ती है। यह कारगर तरीका माध्यमिक स्तर में बहुत तेजी से बच्चा अपने अनुभव से सुनने, बोलने, पढ़ने-लिखने के साथ एक आलोचनात्मक दृष्टि भी पैदा करता है, जिससे कि वह भाषा के आंतरिक-पक्ष को दृश्य, श्रव्य और प्रिंट मीडिया की कई भाषा के शब्द-शक्तियों को समझ सकता है।
  • इसके साथ ही राजनीतिक और सामाजिक चेतना का विकास भी उसमें हो जाता है।
  • राजनीतिक और सामाजिक चेतना का विकास और स्वयं की अस्मिता के संदर्भ में जब वह उपयुक्त भाषा का प्रयोग करता है, भाषा के नियम से परिचित होता है तो निश्चित ही इसके पीछे उसका अनुभव भी कार्य करता है इसलिए अधिगम (Learning) करते समय यानी सीखते समय इन पहलुओं पर विचार करना चाहिए।
  • देखिए आज इंटरनेट के जमाने में देश-पड़ोस की सीमाओं को पार करते हुए हम वैश्विक समाज में रोज सोशल मीडिया के जरिए उठते बैठते हैं। सोते जागते हैं अपने विचारों को प्रस्तुत करते हैं, ऐसे में विभिन्न समुदायों के साथ अपनी भाषा या उनकी भाषा में अभिव्यक्त करने के लिए कई विभिन्न माध्यम है लेकिन जब हम अपनी मातृभाषा में कोई बात कहते हैं तो वह बहुत प्रभावशाली होता है। जैसे ही उस भाषा का ट्रांसलेट कर दिया जाता है, वह प्रभावशीलता थोड़ी कम हो जाती है। लेकिन फिर भी समाचार, खेल, फिल्म और दूसरी कलाओं के माध्यम से हम सीखते है, एनालिसिस करते हैं, यह विश्लेषण माध्यमिक स्तर के बच्चों के लिए बहुत जरूरी होता है।
  • बच्चों की भाषा सीखने (Language Learning) के माध्यम केवल कक्षाएं ही नहीं होती है बल्कि सामाजिक वातावरण (Social Activities), फिल्म (Film) और दूसरी किताबें होती है। केवल भाषा ही इन माध्यमों से नहीं सीखी जाती है बल्कि विचार और एनालिसिस करने की शक्ति भी उनमें पैदा होती है अगर यह सही समय पर मजबूत हो गई निश्चित ही वह बालक अपने आने वाले समय में अपने भाषाई ज्ञान और एनालिसिस पावर केवल पर एक अच्छा मुकाम हासिल कर सकता है।

हिन्दी भाषा शिक्षण का महत्व

आज के दौर में हिन्दी शिक्षा के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है। विश्व की तीसरी सशक्त भाषा के रूप में हिन्दी ने अपना स्थान बनाया है। हिन्दी शिक्षण और शोधकार्य तीव्रता से हो रहे हैं। भारत में संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी ही बोली जाती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश जैसे प्रभावशाली राज्यों की सरकारी भाषा के रूप हिन्दी का ही प्रयोग होता है।

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हिन्दी भाषा का महत्व केवल भारत में ही नहीं विदेशों में भी है। अमेरिका में भारतीयों की उपस्थिति के कारण वहां समुदाय द्वारा हिन्दी को बढ़ावा मिल रहा है। संयुक्त अमीरात, जापान, फिजी, आस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम इत्यादि देशों मे हिन्दी भाषी की संख्या करोड़ों में है। हिन्दी के साथ ही लोग भारत से जुड़ने के लिए संस्कृति और प्राचीन भारत व बुद्ध को समझने के लिए पॉली भाषा भी सीख रहे हैं।

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