Last Updated on March 30, 2023 by Abhishek pandey
primary teacher paragraph writing : प्राथमिक शिक्षक बनने का सपना संजोय लाखों लोग में बस यही बहस चल रहा है कि प्राथमिक टीचर की भर्ती की चयन प्रक्रिया क्या होनी चाहिए। इस पर कई लोगों के अपने अपने विचार हो सकते हैं लेकिन हम आज मौजूदा सरकारी स्कूलों की स्थिति पर ध्यान दें तो यह बात साफ हो कि इन स्कूलों में भौतिक सुविधाओं के अलावा गुणवत्ता युक्त शिक्षा भी एक बड़ी चुनौती है। अब फिर वह प्रश्न पूछता हूं कि प्राथमिक टीचर के चयन की प्रक्रिया क्या होनी चाहिएॽ जाहिर सी बात है किसी विद्यालय में एक अच्छा शिक्षक होना सबसे पहली शर्त है। अब प्रश्न उठता है कि अच्छा टीचर आएगा कैसे जब आज हमारी शिक्षा प्रणाली इतना जर्जर हो चुकी है कि आज बीएड कालेजों में नंबर की होड़ लगी है।
कारण साफ है कि प्राथमिक विद्यालय में अभी तक अन्तिम चयन का आधार एकेडमिक मेरिट है। यह सुनने में अच्छा जरूर लगता है लेकिन ध्यान दें इस समय यूपी बोर्ड परीक्षा चल रही है और अखबारों में खबर रिकार्ड तोड़ हो रहा नकल। वहीं कई ऐसे बोर्ड है जहां ऐसे औसत छात्रों को भी 70 से 80 प्रतिशत नंबर आसानी से मिल जाता है जबकि यूपी बोर्ड में मेधावी छात्र भी इतना नंबर बड़ी मेंहनत से पाते है। वहीं कुछ यूनिवर्सिटी में बीए बीएसी आदि में 50 प्रतिशत नंबर लाना चुनौतीपूर्ण है जबकि कुछ ओपन यूनिवर्सिटी में 60 प्रतिशत अंक आसानी से मिल जाते हैं। ऐसे में अगर एकेडमिक मेरिट से चयन किया जाये तो ऐसी संस्था में पढ़े छात्र एकेडमिक मेरिट में पीछे रह जायेंगे क्योंकि वे उन संस्थानों से पढ़ाई कि जहां पर साठ प्रतिशत नंबर लाना मुशकिल है।
इन छात्रों का क्या दोष जिन्होंने अपनी डिग्री इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से किया हो या बीएचयू से बाजी तो मारेंगे दूसरे प्रदेशों से बीएड में हचक के नंबर के जुगाड़ू छात्र और सीबीएई बोर्ड के औसत छात्र जिनको 70 प्रतिशत नंबर आसानी से मिल जाता है। अब बताएं अगर इस तरह अन्तिम चयन का आधार एकेडमिक मेरिट ही होगी तो नंबर की होड़ में नकल माफिया नंबर के खेल को खेलते रहेंगे और वास्तविक शिक्षा का लक्ष्य सरकार का धरा का धरा रह जाएगा। आखिर कब आएगा बदलावǃ आज बदलाव जरूरी है क्योंकि एक तरफ हम देखते हैं कि बोर्ड के रिजल्ट में कम नंबर आने से छात्र हताशा में अपनी जिंदगी को खत्म समझ आत्महत्या करने का फैसाला ले लेता है और ऐसी खबरों अखबार की सुर्खियां बटोरती है और फिर बहस शुरू हो जाती है।
हमारी शिक्षा प्रणाली की खामियों की जहां अच्छे नंबर से उतीर्ण होने पर ही सम्मान मिलता है। पचास प्रतिशत अंक आने पर भविष्य अंधकारमय लगता है। क्योंकि आगे तो नौकरी इन नंबर के आधार पर ही मिलेगी यह प्रवृत्ति और एकेडमिक बेस चयन ने केवल नकल और आत्महत्या को ही बढ़ावा दे रही है। जो हमारी शिक्षा के लिए कतई ठीक नहीं है।
अब तो यह साफ है कि किसी भी पद के लिए चाहे वह शिक्षक का ही चयन क्यों न हो उसमें एकेडमिक मेरिट चयन का आधार उचित नहीं है। क्योंकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय अभी हाल में सभी बोर्डो में ग्रेडिंग प्रथा लागू कर दी जिससे कि नंबर की होड़ पर लगाम लग सके। लेकिन खुद यूपी बेसिक शिक्षा विभाग इतने साल से प्राथमिक विद्यालय में चयन के लिए एकेडमिक मेरिट आधार बनाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। और मानव संसाधन विकास मंत्रालयों और शिक्षाविद्वानों की ध्येय को नजर अंदाज करती रही।
भला हो अनिवार्य एवं निशुल्क शिक्षा कानून का जिसने शिक्षक पात्रता परीक्षा लागू कर दिया और इस तरह चयन का अन्तिम आधार एकेडमिक मेरिट पर अब सवालिया निशान खड़े होने
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Author Abhishek Pandey, (Journalist and educator) 15 year experience in writing field.
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