Last Updated on December 28, 2023 by Abhishek pandey
भारतीय आजादी के गुमनाम नायक: आज हम अपनी मर्जी से कहीं भी आ जा सकते हैं, पढ़ लिख सकते हैं अपने मनपसंद का करियर चुन सकते हैं, क्योंकि हम आजाद हैं और इस आजादी के लिए वीरों ने अपनी आहुति दी है, पर जब स्वतंत्रता सेनानियों के नाम बताने की बारी आती है तो हम सिर्फ गिने-चुने नाम ही बता पाते हैं, जबकि हकीकत यह है कि आजादी सिर्फ कुछ लोगों के बलिदान से नहीं मिली बल्कि इसके लिए बहुतों ने अपनी जान गंवाई। इनमें से कई तो गुमनामी की अंधेरों में खो चुके हैं। हम आपको ऐसे ही स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी- Bhartee Azadi ke Gumnam nayak
भारतीय आजादी के गुमनाम नायक
हम बताने जा रहे हैं आजादी के महानायक जिनको हम भूल गए हैं–
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी
मतंगिनी हजरा
विनायक दामोदर सावरकर
आजादी की लड़ाई को अपनी कलम से लड़ने वाले दामोदर को आज भले
ही राजनीतिक फायदे के लिए भुनाने की कोशिश की जा रही हो पर
दामोदर जी ने न सिर्फ आजादी की लड़ाई लड़ी
बल्कि हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था के खिलाफ भी आवाज बुलंद की। Bhartee Azadi Gumnam nayak
पीर अली खान
कमलादेवी चट्टोपाध्याय
तिरुपुर कुमारन
डॉ० लक्ष्मी सहगल
गरिमेल्ला सत्यनारायण
तारा रानी श्रीवास्तव
अल्लूरी सीताराम राजू
एन जी रांगा
पोट्टी श्रीरामुल्लू
कनेगांटी हनुमंथू
परबती गिरी
अबदी बानो बेगम
बिश्नी देवी
भारत में गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों में एक नाम है बिश्नी देवी। ऐसी महिला जो अंग्रेजों के शासनकाल में कुमायूं के अल्मोड़ा जिले में पहली बार तिरंगा फहराया। इस तरह से आजादी का बिगुल अल्मोड़ा जिले में भी उन्होंने बजा दिया। आपको बता दें कि बिश्नी देवी का विवाह 13 साल की उम्र में हो गया था और 19 साल की उम्र में उनके पति का निधन हो गया था। आप उनके लिए जीवन का लक्ष्य सन्यास नहीं बल्कि भारत को आजादी दिलाना था। इसके लिए उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के जरिए जागरूकता लोगों में फैलाई। 1930 में सक्रिय रूप से आंदोलन में जुट गई। 25 मई 1930 में अल्मोड़ा के नगर पालिका में तिरंगा फहराया और अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दे दी। अंगरेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। आपको बता दें कि वे उत्तराखंड की पहली महिला थी, जो आजादी के आंदोलन में पहली बार जेल गई थी। स्वतंत्रता आंदोलन की उनकी लड़ाई जारी रही और जेल से छूटने के बाद भी वह आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाती रही और कई बार भी जेल भी गई।
73 साल की उम्र तक जीवित रहीं। 1974 में उनका निधन हो गया।
Author Profile
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Author Abhishek Pandey, (Journalist and educator) 15 year experience in writing field.
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आप सभी का स्वागत है धन्यवाद
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जी हा
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Hello i am divyansh class 7th i live in sultanpur (kushbhavanpur)
आपका स्वागत है!
स्वागत है!
वोहतही अच्छा लगा कि अपने