Hindi Bhasha par nibandh lekhan in hindi

भारत को कब मिलेगी अधिकारिक रूप से राष्ट्रभाषा और उसकी भाषायी पहचान nibandh in hindi : निबंध लेखन का सशक्त माध्यम है। विचारों का प्रवाह निबंध में देखने को मिलता है। देश हित के कई ऐसे मुद्दे जिनपर भावी पीढ़ी को विचार करना चाहिए। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निबंध लेखन या अनुच्छेद लिखन छात्रों को स्कूली पाठ्यक्रम में सिखया जाता है। आज निबंध विषय में नया टापिक लेकर आए हैं, ये आवश्यक विचार है। कई प्रतियोगी परीक्षाओं में ये पूछा जात हैं। राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी को क्यों नहीं स्वीकारा गया। क्या राष्ट्र की सशक्त भाषा के रूप हिन्दी को स्थापित नहीं किया जा सकता है, ऐसे ज्वलंत प्रश्न हर नागरिक के पास है। आइए भारत की राष्ट्र भाषा हिन्दी पर एक निबंध अनुच्छेद के माध्यम से जानिए की राष्ट्रभाषा का कितना महत्त्व होता है?

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nibandh in hindi : भारत की  क्षेत्रीय भाषाओं पर अंग्रेजी हावी है, यह आप समझिए।
हिंदी का विरोध करनेवाले इंग्लिश सीख लेंगे लेकिन हिंदी से इनको परहेज है, जो भाषा सारे समाज व देश को जोड़ती है, उसका सम्मान होना चाहिए। आप तर्कों को समझने की कोशिश कीजिए।
हिंदी का विरोध करने वाले और अंग्रेजी का सपोर्ट करने वाले चंद ऐसे सामंतवादी विचारधारा के लोग हैं जो पूंजीवादी विचारधारा को लेकर चलते हैं, और अंग्रेजी में ही अपनी रोजी रोटी चला रहें।
कुछ लोग अपनी क्षेत्रीय भाषा को सामने रखकर ‘हिंदी’  का विरोध करते हैं।

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असल में हिंदी प्रदेशों के कुछ पूंजीवादी और सामंती विचारधारा के लोग बहाना बनाकर अंग्रेजी का महिमामंडन कर के अंग्रेजी भाषा को आजादी से लेकर अब तक पाल रहे हैं।
अंग्रेजी सोच, अंग्रेजी पूंजीवादी व्यवस्था, अंग्रेजी सामंतवादी व्यवस्था को बनाए रखना चाहते हैं। असल में ऐसे लोगों को अपनी क्षेत्रीय और हिंदी भाषा दोनों से ही प्यार नहीं  हैं।
ऐसे  लोग भड़काते हैं, मुंबई में मराठी चलती है लेकिन सबसे अधिक महंगे स्कूल अंग्रेजी माध्यम के हैं।  

हिंदी फिल्मों में एक्टिंग करने वाले अंग्रेजी के यह शहजादे-शहजादियाँ, हिंदी से करोड़ों कमाते हैं लेकिन हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के नाम पर चुप्पी साध लेते हैं।
अंग्रेजी के गुलाम  लोग ही हिंदी और भारतीय भाषाओं का विरोध करते हैं और कुछ लोग भारतीय भाषाओं के आड़ में हिंदी का विरोध करते हैं।
जिस राष्ट्र की  आधिकारिक और कामकाजी रूप से कोई राष्ट्रभाषा नहीं है, उसकी कोई पहचान नहीं। इसलिए हर भारतीयों का कर्तव्य है कि अंग्रेजी की गुलामी से बाहर निकलो। अंग्रेजी को केवल विदेशी भाषा की ही तरह पढि़ये।  लेकिन अपने देश की कम से कम हिंदी समेत दो-तीन भाषाओं का ज्ञान भी रखिए।
भारत को राष्ट्रभाषा देने के लिए अपना प्रयास करें। यही सच्ची राष्ट्रभक्ति है। विचार करें कि ‘हिंदी राष्ट्रभाषा’ हो और अंग्रेजी की मानसिकता और गुलामी से हम बाहर निकले।
दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था चीन अपनी भाषा में ही तरक्की कर रहा है।
सारे देश की अपनी राष्ट्रभाषा है। लेकिन भारत में 15% लोगों को अंग्रेजी आती है, यह 85% लोगों से कटी (अलग-थलग) हुई भाषा है। यह गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों के लिखे कानून और व्यवस्था की भाषा है।
आइए प्रण लेते हैं, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाएँगे। क्षेत्रीय भाषाओं को सम्मान दें। लेकिन अंग्रेजी भाषा हम भारतीयों की पहचान नहीं हो सकती है क्योंकि यह एक विदेशी भाषा है, हमारी जड़े संस्कृति व साहित्य हमारी भारतीय भाषाओं में है, इसी में हमारी आत्मा बसती है।
जब तक अंग्रेजी से छुटकारा हम नहीं प्राप्त कर सकते तब तक सही मायने में हम आजादी के 7 दशकों के बाद भी आजाद नहीं है।
हिंदी और क्षेत्रीय भाषा का विरोध नहीं, विरोध कीजिए अंग्रेजी भाषा की, अंग्रेजी सोच की, अंग्रेजी व्यवस्था की, अंग्रेजी पूंजीवादी सामंतवादी सिस्टम का।
जय हिंद!
धन्यवाद!

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