भारत की गुमनाम महिला स्वंत्रता सेनानी कौन?| Bharat ki Gumnam freedom fighters| female freedom fighters
भारत की नारी शक्ति का रूप है। भारत की आजादी के लिए उनकी कुर्बानी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। भारत की नारी घर-गृहस्थी के साथ देश की बागडोर भी संभाल रही हैं। आजाद भारत के पहले के इतिहास के पन्नों में झांके तो पाएंगे कि कई ऐसी भारत की वीरांगनाएं थीं, जो देश को आजादी दिलाने की मुहिम में अंग्रेजों से लोहा लिया, अपने साहस और हिम्मत के बल पर अंग्रेजी सत्ता की नींव हिला दी।
भारत की गुमनाम महिला स्वंतत्रता सेनानी के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। जिनके बलिदान और त्याग ने भारत की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमारे देश की महिला स्वतंत्रता सेनानियों Bharat ki Gumnam freedom fighters ने सुख, सुविधा, ऐश्वर्य, आराम को छोड़कर अपना जीवन देश के लिए बलिदान कर दिया आइए जाने ऐसी महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जो इतिहास के पन्नों से गुम हो गई हैं, देश के प्रति इनके बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता है इसलिए आज हम आपको याद दिलाने आए हैं, उन महिला स्वतंत्रता सेनानियों भारत की गुमनाम नायिका female freedom fighters के बारे में जो इतिहास के पन्नों में दर्ज तो हैं लेकिन हम उन्हें कम जानत हैंं।
यह लेख आपके लिए जानकारी (GK) वाला है, इसको पढ़कर आप अनुच्छेद, निबंध लिख सकते हैं, अपने विचार को कहीं भाषण आदि में रख सकते हैं। भारत की गुमनाम महिला स्वंत्रता सेनानी| Bharat ki Gumnam freedom fighters| female freedom fighters के माध्यम से अपको हम Anuchedlekhan, Education, general knowledge की जानकारी हिन्दी Hindi में प्रदान कर रहे हैं, आशा है कि आपको पसंद आएगा—
Female Freedom Fighters
Bharat ki Gumnam freedom fighters| female freedom fighters भारत के नागरिक चाहे वे पुरुष हो या महिला हो या बुजुर्ग हो या बच्चे सभी ने भारत की आजादी के लिए अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाई है। इस कड़ी हम बताने जा रहे हैं महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में, जिनके बारे में लोग बहुत कम जानते हैं। हम आपके लिए लाए हैं इतिहास के झरोखे से उन नामों को जैसे—
लक्ष्मी सहगल,
कल्पना दत्त Kalpna Dutt, प्रीतिलता वादेदार (Pritilata Waddedar),
सुचेता कृपलानी (sucheta kriplani), दुर्गावती (दुर्गा भाभी),
राजकुमारी गुप्ता (Rajkumari Gupta), मातंगिनी हाजरा (Hatangini Hazra) Bharat ki Gumnam freedom fighters जिन्हें भुला दिया गया है पर इनका भारत की आजादी के लिए बलिदान अविस्मरणीय है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है-आइए आज पढ़कर इन गुमनाम महिला स्वतंत्रता सेनानियों (female freedom fighters) को याद करें-
मातंगिनी हाजरा (Matangini Hazra)
कम उम्र में इनका विवाह हो गया और विवाह के 1 साल बाद पति की मृत्यु हो गई। जीवन का उद्देश लगभग समाप्त हो चुका था लेकिन एक विधवा का जीवन जीने वाली माता मातंगिनी हाजरा ने खुद को भारत की आजादी के लिए समर्पित कर दिया। अब उनका सपना था- भारत को आजाद कैसे कराया जाए इसलिए उन्होंने आजादी दिलाने के लिए कई आंदोलन में सक्रिय भूमिका भी निभाई। महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और गांधी बूढ़ी के नाम से उन्होंने प्रसिद्धि पाई। उन्होंने चौकीदार टैक्स के खिलाफ में चौकीदारी टैक्स विरोध प्रदर्शन किया। इसके लिए जगह जगह पर महात्मा गांधी के आह्वान पर लोग को इकट्ठा कर अंग्रेजों के इस काननू के खिलाफ प्रदर्शन किया।
आपको बता दें कि मातंगिनी हाजरा का जन्म 19 अक्टूबर 1870 को पूर्वी बंगाल के तामलुक ग्राम में हुआ था। आज बांग्लादेश के मिदनापुर जिले के अंतर्गत आता है। 1932 में गांधी जी से प्रभावित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाना शुरू कर दिया था।
गांधी के भारत की आाजदी के आंदोलन से वे तब प्रभावित हुईं, जब एक दिन 1932 में उनकी झोंपड़ी के सामने से गांधीजी के आह्वान पर सविनय अवज्ञा आंदोलन का एक जुलूस गुजरा तब उन्होंने बंगाली रीति संस्कृति के अनुसार जुलूस का शंख बजाकर स्वागत किया। जुलूस देखकर उनके मन में एक टीस पैदा हुई, उस जुलूस में कोई महिला नहीं थी। तब उस समय खुद ही उस जुलूस में शामिल हो गइ। उनकी उम्र 62 साल की थी। उनके मने इस उम्र में देश प्रेम का यह जब्जा उस समय बंगाल में गांधी जी के आंदोलन को वहां पर लोग से जोड़ा। मातंगिनी हाजरा का मिशन गांधी के आदोलन के साथ जुड़ गया।
सन 1942 में गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हाथ में तिरंगा लिए और अंग्रेज भारत छोड़ो का उद्घोष करती हुयी भीड़ का नेतृत्व करते हुए आगे बढ़ीं लेकिन निर्दयी-क्रूर-मानवता के दुश्मन अंग्रेजों ने उन पर गोली चला दी, मातंगिनी हाजरा देश के लिए शहीद हो गईं। उनकी हिम्मत और देश के प्रति त्याग-समर्पण की भावना को हम भूल नहीं सकते हैं। उस समय उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए लाखों महिलाओं को प्रेरित किया।
प्रीतिलता वादेदार (Pritilata Waddedar)
Women Indian freedom fighter प्रीतिलता का जन्म 5 मई 1911 को चटगाँव में हुआ था। जो आज बांग्लादेश (अविभाजित भारत) में हुआ था।
स्कूली शिक्षा के दौरान प्रीतिलता एक टैलेंटेड स्टूडेंट्स के रूप में जानी जाती थी। कोलकाता यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। ‘चटगांव शस्त्रागार काण्ड’ की घटना प्रभावित होकर क्रांतिकारी सूर्यसेन के क्रांतिकारी दल की सदस्य बन गयीं और देश की आजादी के संग्राम में अपना योगदान देने लगीं।
इसी कड़ी में 24 सितंबर 1932 को
प्रीतिलता वादेदार (Pritilata Waddedar) ने शूरसेन के साथ मिलकर यूरोपीय क्लब में हमला किया था। आपको बता दें कि अंग्रेजों की भेदभावपूर्ण नीति उस समय पूरे भारत में लागू थी।
उस समय शूरसेन की क्रांतिकारी दल अंग्रेजों के इस भेदभाव के खिलाफ एक्शन में आ गया। दरअसल यूरोपीय क्लब जहां पर अंग्रेज लोग इकट्ठा होते थे, उन्होंने भारतीयों को नीचा दिखाने के लिए उस क्लब के प्रवेश द्वार पर “डॉग्स एंड इंडियन्स नॉट अलाउड” (Dogs and Indians not allowed) का बोर्ड लगा दिया था। इससे नाराज क्रांतिकारी शूरसेन और प्रीतिलता के साथ क्रांतिकारी दल के सदस्यों ने हथियार के साथ उस क्लब में घुस गए। उनका सामना अंग्रेजी सिपाहियों से हुआ। सिपाहियों की गोली से घायल प्रीतिलता पोटेशियम साइनाइड खाकर अपने जीवन को समाप्त कर लिया क्योंकि वह किसी भी कीमत में अंग्रेज सिपाहियों की पकड़ में नहीं आना चाहती थी। अंग्रेजों के खिलाफ उनका संघर्ष और बलिदान लोग के लिए मिसाल बन गई। उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पास से एक चिट्ठी मिली थी, जिसमें लिखा था कि भारत की आजादी के संघर्ष को जारी रखा जाए।
राजकुमारी गुप्ता (Rajkumari Gupta)
female freedom fighters: आपको बता दें कि स्वतंत्रता आंदोलन के समय गांधी जी और शेखर आजाद, भगत सिंह आदि के विचारों से भारत की जनता प्रभावित हो रही थी। अब आजादी के लिए क्रांतिकारी विचारधारा खुलकर सामने आ रही थी। ऐसे में क्रांतिकारियों की मदद से भारत की जनता कर रही थी। चाहे वह किसान हो, मजदूर हो, दुकानदार हो या सरकारी नौकरी करने वाला सभी अपने अपने तरीके से क्रांतिकारियों की मदद करने का काम करना अपना देश के प्रति कर्तव्य समझते थे क्योंकि भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब देने का आंदोलन शुरु हो चुका था। मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली दुर्गा भाभी के योगदान को देशवासी कभी नहीं भूल सकते हैं। female freedom fighters दुर्गा भाभी यानी दुर्गावती का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुआ था।
क्रांतिकारी गतिविधियां इलाहाबाद, कानपुर, लखनऊ और पूरे उत्तर प्रदेश के साथ भारत के अन्य प्रदेशों में बहुत तेजी से अंदर ही अंदर फैल रह था। जलिया वाला बाग हत्याकांड के बाद से अंग्रेजों का क्रूर चेहरा भारतीयों के सामने नजर आ चुका था। भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाख उल्ला जैसे क्रांतिकारियों के मन में क्रांति की ज्वाला भड़क रही थी। देश में जगह जगह क्रातिकारी घटनाएं अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया था। देश के क्रांतिकारियों ने भूमिगत कई संगठन बानाए। अंग्रेज इन संगठनों के खिलाफ कार्यवाई करने के लिए अपने जासूस छोड कर रखे थे, अफसोस कुछ गद्दार हिंदुस्तानी अंग्रेजों का साथा दे रहे थे लेकिन देश देशभक्तों की कमी नहीं थीं। भारत के नागरिक क्रांतिकारियों का हर तरह से उनका सपोर्ट कर रहे थे। जहां सूचनाओं के आदान-प्रदान करने के लिए भारत के कई नागरिक अंदर ही अंदर अंग्रेजों के खिलाफ योजनाएं बनाते थे। ऐसे में दुर्गा भाभी भी क्रांतिकारियों के लिए महत्वपूर्ण सूचना पहुंचाती थीं। क्रांतिकारियों की मदद करती थी ताकि वे अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ सके अंग्रेज कमजोर हो जाए।
दुर्गा भाभी ने भगत सिंह और सुखदेव की मदद की
आपको बता दें कि दुष्ट अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की हत्या के मामले में क्रांतिकारी भगत सिंह और सुखदेव को अंग्रेज खोज रहे थे। तब दुर्गा भाभी ने चोरी-छिपे अंग्रेजों से छिपकर भगत सिंह और सुखदेव को कोलकाता भेजने की मदद की थी।
सन 1940 में सुचेता कृपलानी को महात्मा गांधी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिए चुना था। सुचेता कृपलानी का जन्म 1908 में पंजाब के अंबाला शहर में हुआ था।
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा हासिल की। पढ़ी-लिखी सुचेता कृपलानी एक ऐसी महिला थी चाहती तो वह सरकारी पद चुनकर ऐसो आराम की जिंदगी जी सकती थी लेकिन उनके अंदर देश के प्रति प्रेम और समाज को बदलने की चाहत थी इसलिए उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन का रास्ता चुना।
भारत की आजादी के संघर्ष में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया इसलिए महात्मा गांधी ने भी उन्हें व्यक्तिगत तौर पर सत्याग्रह के लिए आग्रह किया था। सुचेता कृपलानी महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित रही और उन्होंने अंग्रेजों भारत छोड़ो तथा करो मरो आंदोलन के समय अंडर ग्राउंड तरीके से भूमिगत स्वयंसेवक बल की स्थापना की। उस समय महिलाओं को आत्मरक्षा और हथियार संचालन के साथ प्राथमिक चिकित्सा का प्रशिक्षण उन्होंने इस संगठन के जरिए दिया। अंग्रेजो के खिलाफ उनकी इन गतिविधियों के कारण अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ सक्रिय आंदोलन जारी रखा।
भारत स्वतंत्र हुआ तो अपनी काबिलियत के बल उन्हें 1963 से 1967 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ। इस तरह किसी राज्य की प्रथम मुख्य महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव सुचेता कृपलानी
नाम है।
अरुणा आसिफ अली
भारत की महिला स्वतंत्रता सेनानियों में अरुणा आसिफ अली का नाम भी आता है। अरुणा जी का जन्म 16 जुलाई 1909 में पंजाब में हुआ था। इनका विवाह आसिफ अली से हुआ था। शादी के बाद इनका नाम अरूणा आसिफ अली हो गया। अरूणा और आसिफ अली दोनों दंपतियों ने भारत की आजादी के संघर्ष में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। 1930 में गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर नमक आंदोलन में सक्रिय भूमिका इन्होंने निभाई। इस आंदोलन में अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और 1 साल तक उन्हें सजा भी दी गई। इसके बाद भी उनका हौसला टूटा नहीं और आजादी के आंदोलन के संघर्ष में फिर सक्रिय हो गई। उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराया। इस साहस के काम से अंग्रेज नाराज हो गए और उनकी गिरफ्तारी के लिए ₹5000 का इनाम रखा गया। लेकिन अंग्रेज अरुणा को गिरफ्तार करने में नाकामयाब रहे। आपको बता दें कि इनके पति आसिफ अली ने असेंबली बम कांड के समय भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की तरफ से मुकदमे में पैरवी भी की थी। पति—पत्नी दोनों ही भारत की आजादी के संघर्ष में तब तक लगे रहें, जब तक भारत को आजादी नहीं मिल गई। आजाद भारत में आसिफ अली को अमेरिका में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया। यही नहीं 1964 में अरुणा को लेनिन शांति पुरस्कार और 1991 जवाहरलाल नेहरु पुरस्कार से भी नवाजा गया। 29 जुलाई 1996 को अरोड़ा जी का देहांत हो गया। Freedom Fighters अरुणा जी का योगदान अविस्मरणीय है।
लक्ष्मी सहगल Laxmi Sehagal
इस रेजिमेंट में 500 महिला सैनिक थे। लक्ष्मी सहगल के नेतृत्व में लक्ष्मी बाई रेजिमेंट ने अंग्रेजों की सेना से कई महत्वपूर्ण युद्ध किया। इसके अलावा सिंगापुर में जब वे कुछ समय के लिए थी तो ब्रिटिश आर्मी के लिए लड़ रहे भारतीय सैनिकों के लिए हॉस्पिटल खोला और भारतीय मूल के सैनिकों के उपचार का बीड़ा भी उठाया था।
भारत के आजादी के बाद भी वे सक्रिय रूप से देश की सेवा करती रही। भोपाल गैस कांड के घायलों की मेडिकल सहायता अपनी मेडिकल टीम के साथ उन्होंने की।
1984 में सिख दंगों के समय कानपुर में शांति प्रयास में सरकार की सहायता की। भारत सरकार ने उनकी देश सेवा को सम्मान देते हुए पद्म विभूषण अवार्ड से 1998 में सम्मानित किया। सन 2012 में आजाद हिंद फौज की सैनिक लक्ष्मी सहगल (Lakshmi Sahga) का निधन हो गया।
गुमनाम स्वतंत्रताय सेनानी लेख में आपने आज निम्नलिखत के बारे में पढ़ा है— लक्ष्मी सहगल, कल्पना दत्त Kalpna Dutt, प्रीतिलता वादेदार (Pritilata Waddedar), सुचेता कृपलानी (sucheta kriplani), दुर्गावती (दुर्गा भाभी), राजकुमारी गुप्ता (Rajkumari Gupta), मातंगिनी हाजरा (Hatangini Hazra) Bharat ki Gumnam freedom fighters| female freedom fighters के माध्यम से अपको हम Anuchedlekhan, Education, general knowledge की जानकारी हिन्दी Hindi भाषा में दिया है, आपको पसंद आ रहा है। इस लेख को शेयर करें। धन्यवाद।
यह भी पढ़ें-