नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाष सत्यार्थी और मलाला पर सवाल क्यों?
नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाष सत्यार्थी और मलाला पर सवाल क्यों?अभिषेक कांत पाण्डेयनोबेल पुरस्कार और फिर इसमें राजनीति यह सब बातें इन दिनों चर्चा में है। देखा जाए तो विष्व के इतिहास में दूसरे विष्व युद्ध के बाद दुनिया का चेहरा बदला है। आज तकनीकी के इस युग में हम विकास के साथ अषांति की ओर …
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हम पिंजड़ों में
हम सब ने एक नेता चुन लिया उसने कहा उड़ चलो ये बहेलिया की चाल है ये जाल लेकर एकता शक्ति है। हम सब चल दिये नेता के साथ नई आजादी की तरफ हम उड़ रहे जाल के साथ आजादी और नेता दोनों पर विष्वास हम पहुंच चुके थे एक पेड़ के पास अब तक बहेलिया …
अहिंसा और सादगी
अहिंसा और सादगी anuched hindi lekhan nibndh lekhan: 2 अक्टूबर महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री का जन्म दिवस है। एक अहिंसा और दूसरे सादगी के प्रणेता। सभ्य समाज में शांति का महत्व है, यह शांति समाजिक न्याय से आती है। शांति और सादगी दोनों एक दसरे से जुड़े हैं। जीवन में सादगी की जगह अगर हम …
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सफलता!
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सफलता! अभिषेक कांत पाण्डेय न्यू इंडिया प्रहर डेस्क लखनऊ। चुनाव के वक्त नरेंद्र मोदी ने विकास का वायदा किया था, इस वायदे को पूरा करने और सबकों को साथ लेकर चलने की राह पर नरेंद्र मोदी का ऐजेण्डा सामने आ चुका है। एक सवाल उठता रहा कि क्या …
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रूटीन
रूटीनपेड़ों पर टांग दिये गये आइनेंबर्बरता की ओट मेंतय नफा नुकसान के पैमानेनापती सरकारें।चीर प्रचीर सन्नाटातय है मरनाजिंदगियों के साथ।सभ्य सभ्यता के साथहाथ पे हाथ रख मौनवक्त।पेड़ों पर बर्बतालोकतंत्र झूलतापंक्षी भी आवाकनहीं सुस्ताना पेड़ों परसंसद में चूं चूंरूटीन क्या हैआंसुओं का सैलाब बननाया उससे नमक बनानाताने बाने में मकड़जालकांपती जीती आधी आबादीदर्द मध्यकाल का नहींआधुनिकता …
हम बिजली चले जाने पर
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कविता संग्रह समीक्षा- मीरखां का सजरा-श्रीरंग
कविता संग्रह समीक्षा- मीरखां का सजरा-श्रीरंग समकालीन हिन्दी कविता में मीरखां का सजरा श्रीरंग की ताजा कविता संग्रह है। यह संग्रह पाठकों को आकर्षित करती हुई है। इस संग्रह में कुल 74 कविताएं है जो नये समाज की कहानी बड़ी बारीकी से बयान करती है। श्रीरंग का यह तीसरा कविता संग्रह है, इससे पहले …
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विश्वविद्यालय की डिग्री
विश्वविद्यालय की डिग्री यहीं से सीखा पाया समाज में उतरने के लिए फैलाना था पंख लौट के आने वाली उड़ान भरी थी मैंने विश्वविद्यलाय की दीवारों में। दस साल बाद विश्वविद्यालय की सीलन भरी दीवार सब कुछ बयान कर रही नहीं ठीक सूखे फव्वारे अब किसी को नहीं सुख देते सलाखों में तब्दील विश्वविद्यालय। …
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