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आपका बच्चा पढ़ने में कमजोर है तो ये टिप्स जरूर पढ़ें
पैरेंट्स का यही सपना होता है कि उसका बच्चा पढ़ लिखकर कामयाबी हासिल करें। अगर आप अपने बच्चे पर ध्यान नहीं देते हैं तो ये सपना अधूरा रह सकता है। आइए कुछ ऐसे टिप्स बताने जा रहे हैं, जिसे आप अपनाकर अपने बच्चे को पढ़ाई में अव्वल बना सकते हैं।
जब लापरवाह हो बच्चा
पैरेंट्स को समझना चाहिए कि अगर उनका बच्चा लापरवाह है तो उसका पढ़ाई में भी मन नहीं लगेगा। वह क्लास में भी लापरवाही करता है, इसलिए उसके अंक कम आते हैं। अगर बच्चे की स्कूल से शिकायत आ रही हो कि वह क्लास में बातें करता है। टाइमटेबल के हिसाब से कॉपी और बुक्स नहीं लाता है तो आप संभल जाइए, आपका बच्चा लापरवाही कर रहा है, इसलिए आप लापरवाही ना करें, हर दिन उसकी कॉपी और किताबें चेक करें, टाइमटेबल के हिसाब से बुक्स व कॉपी ले जाने के लिए कहें। आप उसकी हर विषय की कॉपी देखें।
ट्यूशन के बावजूद बच्चा पढ़ाई में कमजोर है
अगर आपका बच्चा ऐसे स्कूल में पढ़ रहा है, जहां पर पढ़ाई अच्छी होती है लेकिन आपका बच्चा फिर भी पढ़ाई में कमजोर है, इसलिए आपने बच्चे के लिए ट्यूशन लगवाया है तो आप सावधान हो जाए! आपके बच्चे का पढ़ने मन नहीं लग रहा है। इस समस्या का समाधान ट्यूशन या कोचिंग नहीं है बल्कि उसे पढ़ाई नहीं समझ में नहीं आ रही है। ट्यूशन लगवाने से उसका खेलने—कूदने का समय भी आप छीन रहे हैं। बच्चा 5 से 6 घंटे विद्यालय में पढ़ता है अगर उसके बाद भी उसकी पढ़ाई में कोई उन्नति नहीं होती है तो यह चिंता का विषय है। ध्यान रखिए जब स्कूल में नहीं पढ़ पा रहा है, कल शाम की कोचिंग में भी वह नहीं पढ़ पाएगा क्योंकि समस्या कुछ और है। मसलन बच्चे की भाषा का विकास उसकी कक्षा के अनुसार नहीं हुआ है। स्कूल में उससे पढ़ाई समझ में नहीं आती है। पढ़ाने का तरीका उस बच्चे पढ़ाने का तरीका उस बच्चे के मानसिक स्तर से नहीं है। पढ़ाई में अलग-अलग तरह के विजुअल माध्यमों का उपयोग नहीं हो रहा है। कोचिंग और ट्यूशन के लिए इस बच्चे को फोर्स किया जा रहा है। 6 घंटे पढ़ने के बाद 3 घंटा कोचिंग में समय बाबी तारह इस तरह से उसे पढ़ाई हमेशा रोज की तरह लग रहा है।
आप स्कूल के टीचर से बात करें
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पढ़ाने के तरीके में फेरबदल किया जाए, पढ़ाने के इंट्रेस्टिंग तरीके की जरूरत है। एक्टिविटी और ‘आओ करके सीखे’, जैसे तरीके हर विषय में शामिल हो। बोरिंग पढ़ानेे के तरीके में क्रिएटिव माइंडेड बच्चे कभी रुचि लेकर नहीं पढ़ते हैं इसलिए बच्चे पर ट्यूशन का बोझ न डालें। एक से लेकर आठ तक की कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों स्कूल में छह घंटे का समय बिताते हैं, अगर इतने समय में वे नहीं पढ़ पा रहे हैं तो पढ़ाने के तरीके में बदलाव लाने की जरूरत है।
भाषा की वजह से बच्चा पढ़ाई में कमजोर है
आजकल मातृभाषा यानि मदरटंग में पढ़ाई का चलन नहीं है लेकिन भारतीय शिक्षा में इसी पर कई एजूकेशन कमीशन ने कहा है कि प्राइमरी स्तर पर बच्चे को उसकी मातृभाषा में शिक्षा दी जानी चाहिए और धीरे—धीरे दूसरी भाषा की शिक्षा दी जानी चाहिए। लेकिन अंग्रेजी माध्यम स्कूल सिस्टम मदर टंग और हिंदी भाषा में पिछड़ जाते हैं जो कि उनके प्रारंभिक जान और पढ़ने की रुचि विकसित करता है और इसके साथ ही उनके अंदर नैतिकता की शिक्षा भी देता है।
पढ़ाने के तरीके में फेरबदल किया जाए, पढ़ाने के इंट्रेस्टिंग तरीके की जरूरत है। एक्टिविटी और ‘आओ करके सीखे’, जैसे तरीके हर विषय में शामिल हो। बोरिंग पढ़ानेे के तरीके में क्रिएटिव माइंडेड बच्चे कभी रुचि लेकर नहीं पढ़ते हैं इसलिए बच्चे पर ट्यूशन का बोझ न डालें। एक से लेकर आठ तक की कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों स्कूल में छह घंटे का समय बिताते हैं, अगर इतने समय में वे नहीं पढ़ पा रहे हैं तो पढ़ाने के तरीके में बदलाव लाने की जरूरत है।
भाषा की वजह से बच्चा पढ़ाई में कमजोर है
आजकल मातृभाषा यानि मदरटंग में पढ़ाई का चलन नहीं है लेकिन भारतीय शिक्षा में इसी पर कई एजूकेशन कमीशन ने कहा है कि प्राइमरी स्तर पर बच्चे को उसकी मातृभाषा में शिक्षा दी जानी चाहिए और धीरे—धीरे दूसरी भाषा की शिक्षा दी जानी चाहिए। लेकिन अंग्रेजी माध्यम स्कूल सिस्टम मदर टंग और हिंदी भाषा में पिछड़ जाते हैं जो कि उनके प्रारंभिक जान और पढ़ने की रुचि विकसित करता है और इसके साथ ही उनके अंदर नैतिकता की शिक्षा भी देता है।
अगर बच्चे के घर में अंग्रेजी नहीं बोली जाती है तो अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने के जोर के कारण बच्चे को पढ़ाई समझ में नहीं आती है, बच्चा लगातार पढ़ाई में पिछड़ने लगता है।
आप भी इस बारे में सोचिए! कहीं इस कारण से तो आपका बच्चा पढ़ाई में पिछड़ गया है। ऐसे बच्चों की अंग्रेजी के साथ हिंदी भाषा भी खराब हो जाती है।
इसका उपाय है कि मातृभाषा के अलावा कोई और भाषा जैसे अंग्रेजी या कोई भारतीय भाषा बच्चा सीख रहा है तो उसे एक्टिविटी के जरिए सीखाना चाहिए। ये भी ध्यान रखिए कि भाषा में बोलने की क्षमता का विकास नर्सरी कक्षा से शुरू कर देना चाहिए।
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अंग्रेजी भाषा अनुवाद की तरह नहीं सिखाना चाहिए
भाषा सीखने के ग्रामर के नियमों को आस—पास के उदारणों से समझाना चाहिए। अगर आप इन सुझावों को अपनाते है तो निश्चय ही आपका बच्चा पढ़ने में रुचि लेने लगेगा और वह खुद ही ध्यान देने लगेगा। इस कारण से बच्चा समाज व कक्षा में तेजी से सीखेगा।