2014 में आप से बदलाव की ओर राजनीति
अभिषेक कांत पाण्डेय
भारतीय राजनीति में इस समय वह दौर चल रहा जहां बदलाव आवश्यक है। आप पार्टी इस बदलाव की अग्नि पथ पर चलना शुरू कर दिया है। 2014 का साल आप के साथ ही सभी राजनीति पार्टियों के लिए महत्वपहूर्ण होने वाला है। वहीं एक साल से ज्यादा समय पुरानी आप पार्टी अपनी परिपक्व अवस्था में है। विधान सभा में दिल्ली में पहली बार चुनाव लड़ने वाली आम पार्टी ने 28 सीटें लेकर राजनीति के महान धुरंधरों की बोलती बंद कर दी है। क्या है यह जादू, क्या यह अरविंद केजरीवाल का व्यक्तित्व है या भारतीय राजनीति में वर्तमान पार्टियों के खिलाफ उनके कार्यशैली के प्रति आम जनता का विरोध है। यह बड़ा सवाल आज सभी के मन में है। 2014 में लोक सभा चुनाव भी है। दो धुरी पर खड़ी तो पर्टियां काग्रेस और भाजपा के बीच चुनावी बिगुल बज चुका है। हमें समझना होगा दिल्ली के परिदृश्य में यहां सत्ता में कांग्रेस की सरकार के विरोध स्वर को दूसरी बड़ी पार्टी को लगा कि वह ही जनता का एकमात्र विकल्प है। वहीं आप ने जमीनी स्तर से जल व बिजली का मुद्दा उठाकर, नये चेहरों के साथ दिल्ली की जनता को अपनी ओर खींच और इस खिंचाव ने 28 विधायकों को जीत इतिहास रच दिया। क्या आपकी राजनीति पहल आने वाले लोक सभा में प्रभावी रहेगी। यह सच है जिस तरह महंगाई, भ्रष्टाचार के साथ तुष्टिकरण,धर्म और जाति के राजनीति शुरू हुई। हर एक के मन में इन सब मुद्दों में विकास के मुद्दे हाशिये पर चले गये। सपा,बसपा जैसी पाटियों का उदय एक खास वर्ग की राजनीति करने वाली नई पार्टी के रूप में सिमट गई। वर्तमान में सभी पार्टियों में बेतूके बयानबाजी और आधारहीन राजनीति की शुरूआत के कारण भ्रष्टाचार चरमसीमा पर पहुंच चुकी है। ऐसे में जन लोकपाल आंदोलन की नींव पर आप का जन्म लेना आने वाले लोक सभा चुनाव में नई शुरूआत के रूप में देख सकते हैं। आप पार्टी में क्या राजनीति की कीचड़ को साफ करने की झमता है। क्या आने वाले समय में आप अपना जनाआधार कायम रख पाएगा। वर्तमान राजनीतिक पर्टियों के कथित विकास में आम आदमी खो चुका था, राजनीति पार्टियों ने अपना विकास और पारिवारिक विकास करना शुरू कर दिया ऐसे में आप पार्टी आने वाले समय में आम जनता के सामने दिल्ली में विकास कर अमूलचूल परिवर्तन का उदाहारण रखकर, आप दिल्ली का आईना दिखाकर वह लोक सभा के चुनाव में भारतीय जनता से वोट मांग सकती हैं।
खास तौर पर हम दो दशक की राजनीती पर निगाह डाले तो यह बात सामने आती है कि राजनीति का चेहरा फिल्मों में रिफ्लेक्ट हुआ है आप समझ सकते हैं कि जब आम आदमी थियेटर में होता है तो तीन घण्टे की फिल्मों में राजनीति का विद्रूप चेहरा देख वह नायक का साथ मन ही मन देता है ऐसे मे आज देश में परिवर्तन की राजनीति में आप की भूमिका में आम जनता का जुड़ाव एक नए आंदोलन की शुरूआत है और वह देश के सामने हकीकत का रूप ले रही है। जनता के आकांक्षाओं पर आप को उतरना एक बड़ी चुनौती है। जिसका हल केवल उनकी वर्तमान राजनीतिक पार्टियों से अलग आम जनता के लिए सेवा भाव की राजनीति है। इसकी शुरूआत अरविंद केजरीवाल के रामलीला मैदान पर मुख्यमंत्री पद का शपथ लेने से ही शुरू हो गया है।
सभ्य समाज में सभ्य राजनीतिक पार्टी बनने की यह होड़ आप ने दिल्ली विधान सभा चुनाव से शुरू कर दिया है। ईंमानदारी की पहल की शुरूआत हो गई है। वहीं भारतीय जनता पार्टी की मुश्किल यह है कि अब कांग्रेस के अलावा आप से उसे कड़ी चुनौती मिलेगी। लोकसभा चुनाव में आप पार्टी चुनाव लड़ने से पहले आप का टेस्ट जनता दिल्ली के काम के असर से आकेंगी और इसकी सकारात्मक छवि पूरे भारत के परिदृश्य पर पड़ने पर लोकसभा चुनाव में आप को सीटों का फायदा होगा। संक्षेप यही है कि दिल्ली का होमवर्क आप अच्छी तरह करती है तब दो धुरी पर एक दूसरे का विकल्प बन गई कांग्रेस और भाजपा को परिवर्तन की राजनीति को स्वीकारना होगा। हालांकि ये पार्टियां आज आप को हल्के में ले रही जिसका खामियाजा आने वाले लोकसभा चुनाव में दिखाई दे सकता है। 2014 के शुरूआती दो महीने में जनता की निगाह दिल्ली की हलचल पर रहेगी और सोशल मीडिया का रिफ्लेशन जमीनी तौर पर दिखेगा। भारतीय राजनीति में यह बदलाव मील का पत्थर साबित होगा।
लोक सभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस के अलावा तीसरा विकल्प आप बन सकती है और यह कहना जल्दबाजी भी नहीं होगा कि दिल्ली जैसा समीकरण आप लोकसभा चुनाव में भी देख सकेंगे। त्रिशंकु लोकसभा में आप के पास भले पूर्ण बहुमत नहीं होगा लेकिन राजनीति परिवर्तन के एक अच्छी शुरूआत उसके हाथ में होगी।