हुकूमत की धूप
किताबों में कैद गुजरा वक्तबेइंतहा ले रहा है।कुछ कतरन यूंहवा से बातें कर रहेंबीतने से पहले पढ़ा देना चाहते हैंहवा को भी मेरे खिलाफ बहका देना चाहतेइस मिट्टी की मिठासपानी के साथमेरी खुशबू बता देना चाहती है।बे परवाह है इस हुकूमत की धूपअमीरों के घर पनाह लेती है।झोपड़ी का चिरागखेतों तक रौशनी फैला देती हैभटके …