अभिषेक कांत पाण्डेय/भोपाल। सभी के लिए अनिवार्य एवं निशुल्क शिक्षा कानून के तहत 14 साल तक के बच्चों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा देना राज्य का परम कर्तव्य है। लेकिन आरटीई एक्ट का पालन राज्य सरकार करने मे लचीला रवैया अपना रहे हैं। जिसके चलते गुणवत्ता युक्त शिक्षा की बात बेईमानी साबित हो रही है।
वहीं संविदा शाला वर्ग दो में बीए में सामान्य वर्ग के उन आवेदकों को जिन्होंने बीएड में 22 अगस्त 2010 तक प्रवेश लेकर 2011 तक बीएड उतीर्ण किया है उन्हे 50 प्रतिशत की बाध्यता नहीं है क्योंकि आरटीई एक्ट पात्रता 23 अगस्त 2010 में लागू हुआ है।
इसीलिए वर्ग 3 के लिए जबलपुर हाईकोर्ट के फैसले में भी 50 प्रतिशत की बाध्यता को समाप्त कर दिया गया है। वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले में मनीष सिंह के याचिका में हाईकोर्ट ने परास्नातक 50 प्रतिशत के आधार पर बीएड करने वाले को बीए में कोई अंकों की बध्यता नहीं है यह बात एनसीटीई के वकील में ने भी हाईकोर्ट के सामने स्वीकार किया।
लेकिन नियमों की उपापोह में संविदा शाला भर्ती में अचानक नियमों में परिवर्तन करके स्नातक में 50 प्रतशत के नियम ने हजारों योग्य उम्मीद्वारों को बाहर कर दिया जबकि ये सभी व्यापम की परीक्षा उतीर्ण की।
राजस्थान व उत्तर प्रदेश में सामान्य वर्ग के उम्मीद्वारों के लिए स्नातक में 45 प्रतिशत ही
योग्यता रखी गई है जिसमें वर्तमान भर्ती प्रक्रिया जारी है। सामान्य वर्ग को 45 प्रतिशत में और आरक्षित वर्ग ने 45 प्रतिशत से कम अंकों से बीएड की परीक्षा एनसीटीई के नियमानुसार डिग्री प्राप्त करने वाले हजारों उम्मीद्वार हैं।
वहीं केंद्रीय अध्यापक परीक्षा में भी सामान्य वर्ग के उम्मीद्वार पात्र हैं जिन्होंने बीएड प्रशिक्षण स्नातक के 45 प्रतिशत के साथ उतीर्ण किया और आरक्षित वर्ग के लिए 40 प्रतिशत है। मध्यप्रदेश में नियमों की अनदेखी हो रही है और भर्ती प्रक्रिया में ऐसे बीएड योग्ताधारी को जिन्होंने स्नातक में 50 प्रतिशत से कम अंक के साथ व्यापम की परीक्षा उतीर्ण की है उन्हें वचित किया जा रहा है।