कल्पना

आधुनिक विकिरण से
निकली एक नई उर्जा।
उड़ान भरी वह किरण
जिसने छू लिया
कल्पना के अन्तरिक्ष को
वह आंसू पर
लिपि राख़ नहीं
उर्जा है अणु परमाणु की
कैसे गिरती ये बंदेन
वह जो चमक उठेगी नभ में।

हाथ में कंगन
दो चुटकी सेंदूर
केवल लक्ष्य नहीं
नयी रह नयी चाह है
अब यही।

अभिषेक कान्त पाण्डेय

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