कविता

मानव बनों

मानव बनों

हम जाग गए सवेरा हो गया
कल रात का मंजर
अभी भी है
सुनसान चीखें
बहती पानी के साथ आवाजें
जिंदा शब्द हिलना डुलना में तब्दील
गड़गड़हाट ध्यान से सुन सैलाब नहीं
अब हेलीकाप्टर
उम्मीद खोने के बाद जागने की
हालात देश में
देव भूमि से बत्तर
बच्चे ने बताया
हम कट रहे
काट रहे पेड़।

दिल्ली से
देवभूमि
लाओं उनकों
बताओ
प्र​कृति क्या है
            अभिषेक कांत पाण्डेय

See also  गधे पर दो कविताएं: Hindi poetry on donkey

About the author

admin

New Gyan Blog for knowledge. Author- Abhishek, Journalist

Leave a Comment