कविता

प्रेम-याद, भूल याद नई कविता

प्रेम-याद, भूल याद             नई कविता                       अभिषेक कान्त पाण्डेय 

बार-बार की आदत 
प्रेम में बदल गया 
आदत ही आदत 
कुछ पल सबकी  की नज़रों में चर्चित  मन 
 सभी की ओठों में वर्णित प्रेम की संज्ञा 
अपने दायित्त्व की इतिश्री, लो बना दिया प्रेमी जोडा 
बाज़ार में घूमो, पार्क में टहलों 
हमने तुम दोनों की आँखों में पाया अधखिला प्रेम।
हम समाज तुम्हारे मिलने की व्याख्या प्रेम में करते हैं 
अवतरित कर दिया एक नया प्रेमी युगल।

अब चेतावनी मेरी तरफ से 
तुम्हारा प्रेम, तुमहरा नहीं 
ये प्रेम बंधन है किसी का 
अब मन की बात जान 
याद  करों नदियों का लौटना 
बारिश का ऊपर जाना 
कोल्हू का बैल बन भूल जा, भूल था ।
जूठा प्रेम तेरा 
सोच समझ 
जमाना तैराता  परम्परा में 
बना देती है प्रेमी जोड़ा 
बंधन वाला प्रेम तोड़ 
बस बन जा पुरातत्व 
अब बन जा वर्तमान आदमी 
छोड़ चाँद देख रोटी  का टुकड़ा 
फूल ले बना इत्र, बाज़ार में बेच 
कमा खा, बचा काले होते चेहरे 
प्रेम याद , याद भूल 
देख सूरज, चाँद देख काम
रोटी, टुकड़ा और ज़माना 
भूला दे यादें प्रेम की।

                                         अभिषेक कान्त पाण्डेय 
See also  तिरंगा कहता है

About the author

admin

New Gyan Blog for knowledge. Author- Abhishek, Journalist

Leave a Comment