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ठण्ड के आगोश में

ठण्ड के आगोश में सारे काम धीमी रफ़्तार हो गई जिन्दंगी। नल का पानी भी दुश्मन लगने लगा। सुबह 6 बजे उठना किसी सजा से कम नहीं है। और पेन पकड़ना और उसे पन्ने पर घिसना खेत में हल जोतने से भी अधिक मेहनत का कार्य लगता है। रजाई की याद ठण्ड में बहूत आती है कम से  कम सोचकर ही गर्माहट ली  जा सकती है। सड़क में जलती  अलाव अपने ग्रह के सूरज  से कम नहीं नज़र आता है। सुबह सुबह सूरज को बादलो  में देख मन में ये तसल्ली करता है कि सूरज को ठंडी लग रही है इसलिये बदलो की रजाई ओढ़े हुए है। अब उंगलिया भी ठण्ड के कारन टाइप करने से स्ट्राइक  करने की चेतावनी दे रही  है वही दिमाग का पारा  ठण्ड के कारण  गिर रहा है। शेष अगली ठंडी में ……. 
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Abhishek pandey

Author Abhishek Pandey, (Journalist and educator) 15 year experience in writing field.
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